दो गिलसियां वाली चाय ( old couple story )
एक के चेहरे पर मुस्कान है
तो एक के चेहरे पर चिंता
अम्मा के चेहरे पर झुंरिया के साथ मुस्कान इस बात की शहर से कोई आया उनके घर उनके हाथों की चाय पीने.... और बाबा के चेहरे पर चिंता इस बात की कोई उनकी पेंशन की चिंता दूर कर दे, उनकों कहीं से पता चला की अब घंटो लाइन में लगे बिना ही घर पर रहकर ही अब ऑनलाइन पेंशन का काम हो सकता है , एक अख़बार को हाथों में दबाकर पूछ रहे थे बाबू ज़ी कैसे पता करुँ..?? कहाँ जाऊं..?? आप पढ़े-लिखे साहब हो कुछ बताओ इस बारे में बाबा माथे पर बहुत सारी चिंताओं की लकीरों के साथ पूछ रहे और पीछे खड़ी थी अम्मा वो ख़ुश इस बात से थी की उनके यहाँ की चाय हमने पी थी, वो चाय बेशकीमती पैसों की थी उस चाय के आगे 5 star की चाय भी फीकी थी, अम्मा ने बनाई ही इतने प्यार से थी... थोड़ा सकुचा कर बोली वो चाय के कप नहीं है मंगवा दूं किसी दूकान से, मैने मुस्कुरा कर कहा अम्मा तुम किसमें पीती हो उसमें ही पिला दो, बेटा छोटी-छोटी स्टील की ग़लसीयां हैं पी लोगी.. अम्मा छोटी हैं तो दो लाना एक से काम नहीं चलेगा मेरा और ये सुन वो ख़ुश हो गई...
पर्दा हटा कर कमरे में चाय बनाने अंदर गई तो धीरे से पीछे से मैंने भी झांका ,
एक कमरा उसमें ही उसकी पूरी दुनिया थी, उसमें ही छोटी सी रसोई थी, उसमें ही 6 मुर्ग़े मुर्गियों को रात को वो रखा करती थी,
पहाड़ो में बाहर छोड़ना मुर्गीयों के लिये खतरा होता हैं बाघ, शेर से... 6 मुर्गीयाँ, अम्मा, बाबा और उनका एक बेटा.... और टिन की छत से टपकता बूंद बूंद पानी, घर के लगभग सब बर्तन इधर उधर पड़े थे उन बुदों को खुद में समेटने के लिये... दृश्य बहुत भावुक था की तभी अम्मा की आवाज़ आई जैसे वो कुछ बच्चों से बात कर रही है मैने बड़ी ही उत्सुकता से पूछा अम्मा किस्से बात कर रही हो ..??? मुस्कुराते हुए बोली ये हैं ना अपने घर में एक जग़ह सब बैठी हैं... कमरा थोड़ा छोटा हैं ना इसलिये रात को एक जग़ह ही बैठ जाते हैं ये सब मुर्गा मुर्गी, और मेरी बातों को समझते भी हैं ज़वाब भी देते हैं.... इसी बीच चाय भी बन गई और अम्मा बाहर सकूचा कर देती हुई लो ज़ी चाय पियो, एक चाय का घूंट लेते ही वाह जो निकला तब अम्मा के चेहरे की मुस्कान देखते हुए बनती थी, बिस्किट नमकीन है नहीं अगली बार चाय के संग परसुगीं ज़ी, मैने कहा अम्मा अगली बार खाना खाऊगी वो बनाना और वो फ़िर ख़ुश हो गई.... तभी पास में कुछ बांस से बनी टोकरीयां रखी थी हमने यूं ही पूछ लिया चलते चलते कहाँ से ली तभी दोनों एक साथ बोले हमने खुद ने बनाई हैं, मैं आश्चर्यचकित इस उम्र में ऐसी कला मैने पूछा कितने की हैं... बाबा बोले दाम पूछ रहे हो तो 1000 की, मैने कहा 2 मुझको दे दो, कागज़ में लपेट कर देते हुए बोले ये मेरा हुनर हैं अपने पास तुम संभाल कर रखो तुमसे पैसे नहीं लूंगा में, में तो ज़वाब सुनना चाह राह था बस तुमसे..
अमूल्य बन गई वो टोकरी मेरे लिये,
सच में दिल बहुत बड़ा है इन दोनों का, अब अक्सर हम जब भी उस तरफ़ जाते हैं अम्मा बाबा से मिलने यूं ही मिलने चले जाते हैं... बाबा की बातें बहुत अनुभव वाली होती हैं, नदियों, पहाड़ो की बातें और अपनी जिंदगी के अनुभव साझा करते हैं वो अक्सर, और हाँ अब उनका ऑनलाइन पेंशन वाला काम भी जल्दी हो जायेगा और चाय तो अम्मा के यहाँ की पक्की सी हो गई हैं मेरी " "दो गिलसियां वाली चाय" अम्मा के हाथों की...
आख़िर में जाते जाते अम्मा बाबा दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी और हाथ में वो दो टोकरियां जो अनमोल थी, हमें किसी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए बोहोत कुछ नहीं ख़र्च करना पड़ता, बस किसी के घर का तार तार हुआ पर्दा हटा कर झांक कर घर को निहार उन की ज़रूरत का समान दे दे और कभी उनके यहाँ की चाय पी ले तो आसानी से उनके चेहरे पर मुस्कुराहट ला सकते हैं हम, हमारा बहुत थोड़ा उनकी महीनों की गई मेहनत है....
रुचिरूह
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लाज़वाब चाय एवं बेहतरीन लेखन ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ऐसा लगा जैसे मैं तुम्हारे साथ ही बैठी हूं और सब कुछ मेरे सामने ही घटित हो रहा है यही तो पहचान है एक अच्छे लेखक की
ReplyDeleteThank you 🙏🏻
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