चाय की एक मेरी दोस्त ( Chaay or dost )



"चाय की मेरी एक दोस्त"


 सुबह की दूसरी चाय और किसी का इंतजार.... मुझको मेरी चाय पीने वाली दोस्त का इंतजार और उसको एक प्याली चाय का...  

 बड़ा ही अच्छा रिश्ता है हमारा

 सिर्फ़ उसको ही नहीँ मुझको भी उसकी ज़रूरत है, घर को खुबसूरत बनाने में वो मेरा साथ जो देती है... 

खुश रहती हूं मैं जब वह कहती है दीदी मुझको आपके यहां बहुत अच्छा लगता है,  बस मानो मुझको क्या मिल गया,  उसको पता है मुझको सिलबट्टे की चटनी कितनी पसंद है बस कहना ही नहीं पड़ता जब खुद के लिए बनाती है मेरे लिए थोड़ा सा ले आती है

इतना स्वाद तो मुझको मेरी मिक्सी की चटनी में भी नहीं आता जितना उसके सिलबट्टे की चटनी में आता है

जब भी वह दरवाजे पर खटखट करती है मुझको खुशी मिल जाती है दीदी मैं आ गई राधे राधे और मेरा  अस्सलाम वालेकुम हम दोनों को ही बहुत अच्छा लगता है

वह भी मुस्कुरा जाती है और मैं भी, यही हमारे कई फासले खत्म हो जाते हैं

दीदी क्या क्या लिखती हो कुछ समझ नहीं आता पर शायद अच्छा लिखती होगी

"मुझ पर भी कुछ लिखो ना"

उसका यह अधिकार से कहना मेरे दिल को भा जाता है बस बस थोड़ा सा उसको और अच्छा लग जाए इस वजह के साथ एक छोटी सी कहानी उस पर लिख रही हूं

जब कभी मेरा गुस्सा उस पर निकलता है तो बस वह चुपचाप काम करती रहती है उसका चुप रहना मुझको खल जाता है और मैं फिर एक कप चाय अपने हाथ की उसको बना कर देती हूं और कहती हूं मान जा रेल्ली खातून और वह झट से बस मुस्कुरा देती है और ये ही तरीका उसको पता है मुझको मनाने का,

हम दोनों अलग कौम के हैँ पर जब कोरोना में हम बीमार हुए रोज़ वो दुआ करती थी हम सबके लिये, कभी कभी मेरे मंदिर का वो टिका खुद से लगवाती है अपने माथे पर और उसका हर ईद पर मेरे को सेवीयाँ देना काजू, किशमिश, बादाम से भरी हुई, हम दोनों ही एक दूसरे का धयान रखती है क्यूंकि वो मेरे बिखरे घर को सहेजती है और में उसके घर को कई बार संभाल ले जाती हूँ,

एक दिन घर में काम बहुत था और वो बस काम कर रही थी, chaay के साथ में एक दो टॉफ़ी रख कर बोली "दीदी आज मेरा बर्थडे है "  अरे बताया क्यूँ नहीं पहले

दीदी कभी मनाया ही नहीं,  फ़िर क्या बताती

बस थोड़ा सा उसका वो दिन ख़ास करने के लिये थोड़ा सा जो किया

 वो उसके लिये हमेशा की तरह फ़िर बहुत हो गया, 


हम लोगों का थोड़ा सा किया हुआ इन लोगों के लिये बहुत होता है, दुआ के लिये हाथ दोनों आसमां में उठाते हैं  बस एक हाथ जोड़ लेता है और दूसरा हाथ खुला रखता है,  

बस ऐसी है मेरे काम को और  सिरहाने वाली मेरे काम में हाथ   बटानें वाली मेरी सुबह और शाम की चाय की बेहतरीन दोस्त रेल्ली खातून 

 

Ruchirooh

Freelance writer

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