"एक लापता यादों से भरा बैग "
"एक लापता यादों से भरा बैग "
आज परिवार के साथ कहीं बाहर खाना खाने गई थी, गई तो थी ख़ुशी का जशन मनाने पर लौटी ग़ुजरी यादों के साथ, यादें एक दूसरे से जुड़ी होती है और कई बार बेजान चीजें भी यादों के भॅवर में ले जाती है कुछ ऐसा ही आज हुआ मेरे साथ.....
हम सब एक दूसरे से बातें कर रहे थे पर बार-बार मेरी नजर पास रखें एक "काले बैग" पर जा रही थी, मैं चुपके से उसे देख़ रही थी और बीच - बीच में सबकी बातों के साथ उनकी बातों में मैं भी हसीं का तड़का लगा रही थी... और चुपके से तिरछी निगाह के साथ बार-बार उस बैग को भी देख रही थी, मन में एक विचार बार-बार आ रहा था यह अकेला क्यों है..??? किसका है..?? कोई दिख क्यों नहीं रहा इसके पास..?? बहुत सारे सवाल मन में चल रहे थे, बहुत देर हुई और और बेजान सा बैग चुप होकर भी मुझसे बहुत सी बातें कर रहा था और वो वार्तालाप सिर्फ उसके और मेरे बीच हो रही थी...
मैंने सबकी निगाहों से बचकर उस ब्लैक बैग को अपने बराबर वाली सीट पर रख दिया नीचे ज़मीन से उठाकर, अब वो लावारिस नहीं था बल्कि एक अनजान दोस्त के साथ बैठा था "मेरे साथ"
मैं बीच-बीच में चुपके से उस बैग को ले जाने वाले को खोज रही थी, ना जाने क्यूँ वो काला बैग "यादों से भरा बैग" लग रहा था किसी का....
मेरा भी था एक यादों से भरा बैग, सहसा उस लावारिस बैग को देखकर मुझको मेरा बैग याद आ गया,
हुआ यूं की एक बार एयरपोर्ट से कैब लेकर घर की तरफ़ चली थी, वो सफर कुछ खास था क्योंकि बहुत सी यादों को समेट कर लाई थी एक एल्बम में जिसमें गुजरे वक्त की फोटोस थी और एक छोटी सी डायरी जिसमें वक़्त निकालकर कुछ ना कुछ लिख दिया करती थी, वो फोटोज मोबाइल में कैद नहीं थी एल्बम में थी.. फोटोज बहुत पुरानी जो थी आजकल की तरह नहीं मोबाइल,हार्ड डिस्क, गूगल ड्राइव और ना जाने कहां-कहां सेव कर लेते हैं, उस तरह नहीं थी मेरी एल्बम...
पर तब हम कैमरे की यादों की रील को एल्बम में जगह दे देते थे, में भी बहुत सी यादों को समेट कर एक काले ही पर्स में लेकर उत्साहित होकर घर जा रही थी कि यादों की पोटली खोलूंगी और परिवार के साथ बाटुंगी, घर जाकर सब समान के बीच मेरा वो काला पर्स दिखा ही नहीं......
तुरंत याद आया अरे वो तो सीट पर रखा ही भूल गई, तुरंत कॉल किया कैब ड्राइवर को.....
भैया जी एक बैग कैब में रह गया है पूरी बात हुई भी नहीं थी कि उधर से आवाज आई "नहीं है"
अरे था वहीं आप देखो ना अच्छे से.... मेरे पर्स में पैसे हैं वो रख लो आप, अभी पर्स भी नया ख़रीदा है थोड़ा महंगा है वो भी रख लो पर उसमें मेरी एक एल्बम है और एक छोटी सी डायरी उसकी कहीं कोई दूसरी कॉपी नहीं है प्लीज वो दे दो, पर उसको शायद मेरी यादों से ज्यादा पैसों की खनक पसंद आ गई थी और उसमें रखा सामान..
नहीं है,नहीं है, नहीं है बस एक आवाज़ उस तरफ से गूंज रही थी...
अचानक से मैम आपकी चाय, और सहसा मैंने वो अंजान काला बैग उठाया और कुछ उसमें से टटोलने लगी,एक फ्लाइट का टिकट, एक पर्स, जिसमें कुछ पैसे कुछ कार्ड और एक छोटी सी "डायरी" और बहुत सारे कागज़ थे, काग़जो पर डायरी पर सरसरी निगाह से देख़ रही थी में मुझको तो बस एक फ़ोन नंबर चाहिए था.. कागजों पर लिखा कितना कीमती होता है यह एक लेखक या लेखिका से अच्छा कौन जाने, जब भी मुझको कुछ ख़ास याद आता है, मैं भी तो झट से कागज पर लिख देती हूं, कई बार पुरानी किताबों में कोई कागज छुपा होता है, तो कभी अलमारी में कपड़ों की तहों के बीच या किसी पुराने समान में कागज़ की पर्चीयां जिन पर कुछ ना कुछ लिखा होता है मिल ही जाता है, कागजों पर लिखा बहुत बेशकीमती होता है साहब, क्योंकि कई बार याददाश्त साथ नहीं देती...
एयर टिकट जोशी जी के नाम से था उस पर फ़ोन नंबर मिल ही गया.. जोशी जी के बैग में भी एक छोटी सी डायरी थी और उसमें घर का हिसाब कुछ सामानऔर बहुत कुछ अच्छा सा लिखा था, अक्सर हम व्यस्त जीवन में बहुत सी चीजों को भूल जाते हैं, जोशी जी ने भी कुछ सामान लिख छोड़ा था अपनी डायरी में , वक्त मिलने पर लेना होगा उनको इसलिए डायरी में लिखा करते थे, उस सामान की लिस्ट को देखकर मेरे चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कुराहट आ ही गई "परिवार वाली जिम्मेदार इंसान वाली बातें "
यह बातें भी क्या यादें होती है ना
हर बात पर मुझको बातें याद आ रही थी अपने बैग की और अपनी एल्बम के साथ हर फोटो के पीछे लिखी कविताएं, अब बस जोशी जी का नंबर मिला तो कुछ राहत मिली... क्या पता उस डायरी में कुछ खास उस अनजान की यादों का कुछ लिखा हो, या उन कागजों में कोई पुरानी बात उनकी छुपी हो, ना जाने कितनी यादों का पिटारा हो उस काले बैग में..
एयरटिकट पर जोशी जी का नाम था, उसमें एक फ़ोन नंबर, फोन नंबर मिलते ही 1,2,3,4,5 नहीं न जाने कितनी बार कई बार फोन मिलाया पर फोन नहीं उठा उस तरफ से, सोचा आखिर में एक बार और मिला लेती हुँ नहीं तो रिसेप्शन में दे जाऊंगी, पर चिंता मुझको एक ही थी सही हाथों में यह बैग बस चला जाए इसी उधेड़बुन के बीच अचानक फोन उठा....
हेलो कौन..??
जोशी जी बोल रहे हैं ना..
जी जी..
आपका कोई बैग खो गया है शायद..
उधर से जो आवाज थी उनकी खुशी की खनक कान में गूंज रही थी
में ही जोशी हुँ.. हाँ जी,हाँ जी वो मेरा ही बैग है, "आप किसी को ना दे वो बैग" अपने पास रखें, में तो नहीं मेरे भाई आ रहे हैं उसको लेने... वो भरोसा कमा लिया मैंने एक पल में
भाई आए और बैग ले गए पर इस बार मेरा फोन बजा और उस तरफ़ से आवाज़ आई "बहुत-बहुत शुक्रिया आपका god bless u मेरा बैग मिल गया भाई को", उनका बार बार शुक्रिया कहना, उससे ज्यादा अच्छा मुझको उनकी आवाज की खिलखिलाहट लग रही थी, किसी की "यादों का भरा बैग" मैंने उस तक पहुंचाया और यह खुशी मेरे लिए बहुत थी ||
काश की गुजरे मेरे उस वक्त में भी यादों की एल्बम और मेरी वह छोटी सी डायरी मुझको मिल जाती और मैं भी शुक्रिया किसी अनजान को कह पाती.. काश की काश
यादों को समेटना मुझको तब भी अच्छा लगता था और आज भी, सब बातों का ताना बाना जोड़कर रात के दो बजे जो मन में यादों की उथल- पुथल चल रही थी वो सब लिख डाला एक कागज पर...
नानी की एक सीख हमेशा याद रहती है मुझको "जैसी नियत वैसी बरकत"
और इस बात को मैंने हमेशा माना है, जिंदगी में हर तरह के लोग होते हैं कुछ सबक दे जाते हैं और कुछ सीख
मुझको आज भी लगता है कि मेरे बैग में जो पैसे थे और कुछ खास चीज़े उसकी किसी को जरूरत होगी में एक माध्यम बन गई थी बस...
यादों का क्या है वो तो हमने फिर से समेट ही ली
"एक लापता यादों से भरा बैग" जिसका था उसके पास सही तरीके से पहुंच गया
एक चीज सीखी जिंदगी के उतार-चढ़ावों से अच्छाई करने के लिए कुछ खास नहीं करना होता बस जो हमारे साथ गलत हुआ हो किसी और के साथ ना हो बस इतना सा करना होता है, और सब तो ऊपर वाला वैसे भी देख ही रहा है |
एक बहुत सुकून के साथ एक कहानी और लिखी निजी अनुभव पर..
क्यों में काल्पनिक लिखूँ जब आसपास इतना सब कुछ है मेरे पास लिखने को...
एक ख़ास बात और बताऊ, बहुत दिन से ना जाने क्यों कुछ लिख नहीं पा रही थी कि अचानक आज बस कलम लिखे जा रही है, एक अनुभव जो आज हुआ
इस बार शुक्रिया मुझको जोशी जी को कहना था की उनके एक यादों से भरे बैग ने मेरी डायरी में जगह ले ली एक कहानी के रूप में मैंने एक और कहानी लिख ली..
शुक्रिया मेरी प्यारी नानी को भी उसका कहा मुझे हमेशा कुछ दे जाता है और शुक्रिया उस "लापता यादों से भरे बैग" का भी जो काली काली आंखों से चुपके से मुझे देख़ रहा था तब जो सिर्फ मुझ को देख रही थी, कौन कहता है बेजान चीज़े बाते नहीं करती में तो आज भी चाँद, सितारों, गीली मिटी, ओस की बूंदे, शाम, सुबह और मेरी सुकून वाली चाय सब मुझसे बाते करती है.. सबमें बातें भरी हुई है कभी वक़्त निकालो इनसे बात करने का...
आस पास सब बेजान चीज़ो का बहुत बहुत शुक्रिया
रूचि रूह
@instaid: ruchi_roohhh_053
@instaid: roohzayka_53
Beautifully written ♥️♥️
ReplyDeleteवाह... यादों बैग ही ऐसा.... जिसकी याद.. हमेशा ही रहती है.... beautiful written... 🖋🖋📝
ReplyDeleteBeautifully written 👌🏻👌🏻👌🏻💕💕💕
ReplyDelete