मीठे के शौक़ीन पंडित और उम्र के साथ किस्तों में बिखरा मीठा (pandit or meetha )
"मीठे के शौकीन पंडित और
उम्र के साथ किस्तों में बिखरा मीठा "
मेरे शर्मा जी ( मेरे Papa ) को मीठा बहुत पसंद है, तो मीठा तो पंडितों की पहचान होती है ना अक्सर हम शादियों में जब जाया करते थे वहां दो पंडितों का जोड़ा फेमस हुआ करता था एक मेरे पापा दूसरे उनके खास दोस्त और मेरे राधे-राधे वाले अंकल गिरजेश पंडित जी.... गरमा गर्म गुलाब जामुन हो या फिर जलेबी या हो फ़िर रबड़ी होड़ लगती थी 2 पंडितों में कौन कितनी खाएगा, हमारा जहां दो में ही काम तमाम होता था वहां उन दो पंडितों की शुरुआत होती थी होड़ पर होड़ और हम बस देखते थे मुस्कुराते हुए सिर्फ़ देख़ते थे दो पंडित यारों को.... मेरे पंडित जी को रबड़ी हो या रसमलाई या फिर हो घी बुरा उनको शुरू से मीठा बहुत पसंद था, बस तभी से मैंने सोचा जब बड़ी होगी तब मैं भी माँ जैसी जलेबी या माल पूआ बनाउंगी... शर्मा जी को खूब जी भर के मीठा खिलाऊंगी.... आज जब बड़े हुए तो मीठा तो है पर टुकड़ों में खाया जाता है, आज जब खिलाने वाली हुई तो उनका मीठा बहुत कम हो गया एक और मन की हसरत मन में ही रह गई... शर्मा जी को जी भर के मीठा खिलाने की हसरत...
मैं भूल गई थी बड़ी मैं ही नहीं मेरे शर्मा जी भी हो गए हैं जब बचपन था तो आता नहीं था बनाना, अब जब बड़े हुए तो भाता नहीं मीठा
यही जिंदगी की सच्चाई है
आज भी खिलाती हूं मीठा उनको, पर थोड़ा थोड़ा किस्तों में और माँ अपनी बड़ी बड़ी आंखों से डराती है, मत करो मन का दिक्कत हो जाएगी बस यही सुनाती है
जिंदगी की सच्चाई भी कुछ ऐसी ही है "मत करो मन का बहुत दिक्कत हो जाएगी" पर हम भी है पूरे बेशर्म किस्तों में ही सही पर मन का मजा ले ही लेते हैं थोड़ा थोड़ा मीठा चखकर जिंदगी को जी लेते है...
Ruchirooh
Good
ReplyDeleteThank you
ReplyDeleteBht hi acha masiiii
ReplyDeleteIt’s superbly written , in simple words you have express the situation which almost every female faces 👏👏
ReplyDelete