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रात और नज़म

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 कल रात एक नज़्म भूल बैठी फिर से  कल रात एक नज़्म भूल बैठी फिर से वही खुले आकाश के नीचे तारों की छांव में, धीरे-धीरे कुछ गुनगुना रही थी तो कुछ बुद बूदा रही थी,  घर से एक जोरदार आवाज आई रात बहुत हो गई है कोई आया है मिलने,  पर मैं मन ही मन बहुत खुश थी कि मेरी एक और कविता एक और नज़्म पूरी हो रही थी,  घर आकर देखा तो कुछ दोस्तों का  ताना-बाना था, कुछ दोस्त यूं ही  अचानक आ गए थे चाय पर  दिल बहलाने,  देर रात मैंने कलम कागज़ निकाला  लिखने को वो खूबसूरत वो नज़म, पर याद करने पर भी याद नहीं आई वो मुझे, भूल बैठी वह अपनी खास नज़म खूब सोचा तब बस यह याद आया तारे थे आकाश थे और खुली हवा का झोंका, और बस कुछ और याद नहीं रहा,  कल देर रात भूल बैठी फिर अपनी वो ख़ास नज़म,   कल फिर से उसी जगह पर जाऊंगी क्या पता  कुछ भुला फिर से याद आ जाए,   अक्सर बचपन में यही कहा करते थे जहां कुछ भूल जाते थे उसी जगह जाकर याद किया करते थे, क्या पता मेरी वह प्यारी  नज़म मुझे भी उसी जगह फिर से याद आ जाये...  Insta id @Writerruchi_roohhh_053

कहानियाँ

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 कितनी ही कहानियाँ हमारे अंदर होती है और कितनी ही हमारे आसपास, उनमें से सबसे बेहतरीन कहानियाँ हमारे जेहन में छाप छोड़ जाती है और जब वो कहानियाँ लिखी जाती है तो कमाल ही होता है, पर साथ में कई अपनों के दर्द भी हमको छू जाते है और जब उनको लिखते है तो खुद की आँखों के किनारे भीग जाते है ...... मेरी कहानियों में बहुत कुछ है पर सच्चा है,  जो भी अनुभव किया सब लिखा क्यूंकि कई बार बहुत कुछ कहा नहीं जाता ना ही समझाया जा सकता है बस उसको अपने अंदर से सफ़ेद कागजों पर उडेल दिया जाता है. .......  Writerruchi_roohhh_053  बहुत कुछ लिखना अभी बाकि है मेरे दोस्त 

चाय की एक मेरी दोस्त ( Chaay or dost )

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"चाय की मेरी एक दोस्त"  सुबह की दूसरी चाय और किसी का इंतजार.... मुझको मेरी चाय पीने वाली दोस्त का इंतजार और उसको एक प्याली चाय का...    बड़ा ही अच्छा रिश्ता है हमारा  सिर्फ़ उसको ही नहीँ मुझको भी उसकी ज़रूरत है, घर को खुबसूरत बनाने में वो मेरा साथ जो देती है...  खुश रहती हूं मैं जब वह कहती है दीदी मुझको आपके यहां बहुत अच्छा लगता है,  बस मानो मुझको क्या मिल गया,  उसको पता है मुझको सिलबट्टे की चटनी कितनी पसंद है बस कहना ही नहीं पड़ता जब खुद के लिए बनाती है मेरे लिए थोड़ा सा ले आती है इतना स्वाद तो मुझको मेरी मिक्सी की चटनी में भी नहीं आता जितना उसके सिलबट्टे की चटनी में आता है जब भी वह दरवाजे पर खटखट करती है मुझको खुशी मिल जाती है दीदी मैं आ गई राधे राधे और मेरा  अस्सलाम वालेकुम हम दोनों को ही बहुत अच्छा लगता है वह भी मुस्कुरा जाती है और मैं भी, यही हमारे कई फासले खत्म हो जाते हैं दीदी क्या क्या लिखती हो कुछ समझ नहीं आता पर शायद अच्छा लिखती होगी "मुझ पर भी कुछ लिखो ना" उसका यह अधिकार से कहना मेरे दिल को भा जाता है बस बस थोड़ा सा उसको और अच्छा लग ...

दो गिलसियां वाली चाय ( old couple story )

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एक के चेहरे पर मुस्कान है तो एक के चेहरे पर चिंता अम्मा के चेहरे पर झुंरिया के साथ मुस्कान इस बात की शहर से कोई आया उनके घर उनके हाथों की चाय पीने.... और बाबा के चेहरे पर चिंता इस बात की कोई उनकी पेंशन की चिंता दूर कर दे, उनकों कहीं से पता चला की अब घंटो लाइन में लगे बिना ही घर पर रहकर ही अब ऑनलाइन पेंशन का काम हो सकता है , एक अख़बार को हाथों में दबाकर पूछ रहे थे बाबू ज़ी कैसे पता करुँ..?? कहाँ जाऊं..?? आप पढ़े-लिखे साहब हो कुछ बताओ इस बारे में बाबा माथे पर बहुत सारी चिंताओं की लकीरों के साथ पूछ रहे और पीछे खड़ी थी अम्मा वो ख़ुश इस बात से थी की उनके यहाँ की चाय हमने पी थी, वो चाय बेशकीमती पैसों की थी उस चाय के आगे 5 star की चाय भी फीकी थी, अम्मा ने बनाई ही इतने प्यार से थी... थोड़ा सकुचा कर बोली वो चाय के कप नहीं है मंगवा दूं किसी दूकान से, मैने मुस्कुरा कर कहा अम्मा तुम किसमें पीती हो उसमें ही पिला दो, बेटा छोटी-छोटी स्टील की ग़लसीयां हैं पी लोगी.. अम्मा छोटी हैं तो दो लाना एक से काम नहीं चलेगा मेरा और ये सुन वो ख़ुश हो गई...  पर्दा हटा कर कमरे में चाय बनाने अंदर गई तो धीरे से पीछे से ...

"लाड़ो रानी " ( hostel life )

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अब कुछ नए से चेहरे दिख रहे हैं मेरी छोटी सी बच्ची के कुछ और    नए दोस्त बन रहे हैं, कितनी मुश्किल थी वो रात जब पहली बार उससे अलग हुई थी, आँखों में ढेर सारे आंसूओ को  छुपाकर उसको समझा रही थी, तभी पीछे से कुछ प्यारी सी बच्चियां आई और उसको गले से लगा कर बोली, हम हैं ना, हम धयान रख लेगी इसका, आप आराम से जाओ मेरी छोटी सी लाडो अब बड़ी सी हो रही थी, जो शाल को पहनना old fashion माना करती थी, वो जाते हुए मेरा शॉल माँग रही थी... उसके मन में बहुत सारे सवालों में से एक सवाल मेरे पास आकर धीरे से वो बोली, मां सुबह दो चोटियां  गूथ कर कैसे बनाउंगी, तभी फ़िर से परियों के झुंड में से बहुत सी आवाजें एक साथ आई हम हैं ना, सच में मन ख़ुश हो गया  छोटे बच्चों को संभालने वाली दोस्त कहुँ या बड़ी बहन या बच्चों की मासी जैसी कल्पना, उनकों ढेरों बाते समझा कर आई मैं, क्या करुँ मां हूँ ना, मन में ढेरों बाते थी और उन्होंने बस ये कहा " मैं हूँ ना " संभल जाएगी ये दूसरी तरफ़ सीमा ज़ी ने भी उसको गले से लगा लिया, सीमा ज़ी बोली कोई दिक्कत होगी हम ध्यान रखेंगे इसका, आप निश्चिंत होकर जाओ यहाँ से... फ़िर जाते...

"एक लापता यादों से भरा बैग "

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                            "एक लापता यादों से भरा बैग " आज परिवार के साथ कहीं बाहर खाना खाने गई थी, गई तो थी ख़ुशी का जशन मनाने पर लौटी ग़ुजरी यादों के साथ, यादें एक दूसरे से जुड़ी होती है और कई बार बेजान चीजें  भी यादों के भॅवर में ले जाती है कुछ ऐसा ही आज हुआ मेरे साथ.....  हम सब एक दूसरे से बातें कर रहे थे पर बार-बार मेरी नजर पास रखें एक "काले बैग" पर जा रही थी, मैं चुपके से उसे देख़ रही थी और बीच - बीच में सबकी बातों के साथ उनकी बातों में मैं भी हसीं का तड़का लगा रही थी... और चुपके से तिरछी निगाह के साथ  बार-बार उस बैग को भी देख रही थी, मन में एक विचार बार-बार आ रहा था यह अकेला क्यों है..??? किसका है..?? कोई दिख क्यों नहीं रहा इसके पास..?? बहुत सारे सवाल मन में चल रहे थे, बहुत देर हुई और और बेजान सा बैग चुप होकर भी मुझसे बहुत सी बातें कर रहा था और वो वार्तालाप सिर्फ उसके और मेरे बीच हो रही थी...  मैंने सबकी निगाहों से बचकर उस ब्लैक बैग को अपने बराबर वाली सीट पर ...

प्रकृति की एक और खूबसूरत कहानी ( birds story )

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" प्रकृती की एक और खूबसूरत कहानी" बहुत से लोगों को ये गाना पसंद हैं, पर अब कई लोगों को ये गाना याद होगा या नहीं पता नहीं पर कबूतर पसंद नहीं ये बहुत अच्छे से पता है मुझको... अक्सर उनकी बैठने की जग़ह पर नुकिली कीले दिख जाती हैं कई घरों पर... उनका कहना होता हैं गंदिगी बहुत करते हैं ये, कबूतरों का आना वास्तु के हिसाब से अच्छा नहीं हैं... कई जग़ह तो ये प्रूफ भी किया गया इनके आने से कैंसर तक हो जाता है, फ़िर क्या था दूकानदारों को अपना समान बेचने का एक और ज़रिया मिल गया और निकाल दिया स्प्रे भी और कई फैंसी जाल और कीले भी... जब मम्मी को cancer हुआ था तो मेरे घर कबूतर नहीं आया करते थे फ़िर भी उनकों कैंसर हुआ और वो चली गई.... मुझको अब प्रकति की किस चीज पर ये बोलना होगा की इस वज़ह से उनकों कैंसर हुआ??? घर के अंदर नहीं रहते ये, आने का रास्ता खुला रहता हैं फ़िर भी नहीं आते कभी, उनकों बस कुछ देर बाहर बैठना होता है वो भी थक जाते होंगे ना उड़ते उड़ते, मैं बस ये सोचकर कुछ दाना पानी डाल देती हूँ... इनके रहने की जगहों पर हमने ऊंची ऊंची इमारतें नुमा मंजिलें बना दि और अब थोड़ी देर बैठने की जगह भी...